कर्पुर गौरम करुणाअवतारं संसार सारं भुजगेन्द्र हारम् ।
सदावसन्तम हृदया विंदे भवम भवानी सहितम नमामि । ।
शनिवार, 14 नवंबर 2009
शुक्रवार, 13 नवंबर 2009
आरती शिवजी की
जय शिव ॐ कारा हेर शिव ॐ कारा ।
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अर्धांगिनी धारा । । ॐ .
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे ।
हंसासन गरुडासन वृष वाहन साजे । । ॐ ।
दोय भुज चार चतुर्भुज, दस भुज से सोहे ।
तीनो रूप निखरता, त्रिभुवन सम मोहे । ॐ ।
अक्षमाला वनमाला, रुण्डमाला धारी ।
चन्दन मृग मद चंदा, भाले शुभकारी । ॐ ।
श्येताम्बर पिताम्बर , बागाम्बर अंगे ।
सनकादिक ब्रह्मादिक, भूतादिक संगे । ॐ ।
लक्ष्मी अरु गायत्री , पारवती संगे ।
अर्धांगी अरु , त्रिभंगीसोहत है अंगे । ॐ ।
कर मध्य कमंडल , चक्र त्रिशूलधरता ।
जगकर्ता जग्भरता , जग संहार करता । ॐ ।
ब्रह्म विष्णो सदाशिव , जानत अभिवेका ।
प्रणयवाश र के मध्य , ये तीनो एका । ॐ ।
काशी में विश्वनाथ विराजे , नन्न्दो ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पाए ,शिवजी की महिमा अति भारी । ॐ ।
त्रिगुनानन स्वामी , की आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द, नर सुख सम्पति पावे । ॐ ।
ॐ जय शिव ॐ करा हो स्वामी हर शिव ॐ करा ।
ब्रम्हा विष्णो सदाशिव अर्धांगी धरा । ॐ ।
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अर्धांगिनी धारा । । ॐ .
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे ।
हंसासन गरुडासन वृष वाहन साजे । । ॐ ।
दोय भुज चार चतुर्भुज, दस भुज से सोहे ।
तीनो रूप निखरता, त्रिभुवन सम मोहे । ॐ ।
अक्षमाला वनमाला, रुण्डमाला धारी ।
चन्दन मृग मद चंदा, भाले शुभकारी । ॐ ।
श्येताम्बर पिताम्बर , बागाम्बर अंगे ।
सनकादिक ब्रह्मादिक, भूतादिक संगे । ॐ ।
लक्ष्मी अरु गायत्री , पारवती संगे ।
अर्धांगी अरु , त्रिभंगीसोहत है अंगे । ॐ ।
कर मध्य कमंडल , चक्र त्रिशूलधरता ।
जगकर्ता जग्भरता , जग संहार करता । ॐ ।
ब्रह्म विष्णो सदाशिव , जानत अभिवेका ।
प्रणयवाश र के मध्य , ये तीनो एका । ॐ ।
काशी में विश्वनाथ विराजे , नन्न्दो ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पाए ,शिवजी की महिमा अति भारी । ॐ ।
त्रिगुनानन स्वामी , की आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द, नर सुख सम्पति पावे । ॐ ।
ॐ जय शिव ॐ करा हो स्वामी हर शिव ॐ करा ।
ब्रम्हा विष्णो सदाशिव अर्धांगी धरा । ॐ ।
शनिवार, 28 फ़रवरी 2009
श्री दधिमती जी की आरती
जय जय जनकसु नंदनी , हरीवंदनी हे.हरी वन्दनी हे ।
दुष्ट निकन्दनि मात , जय जय विष्णु प्रिये । ।
सकल मनोरथ दोहिनी , जग मोहिनी हे .जग मोहिनी हे ।
पशुपति मोहिनी मात , जय जय विष्णु प्रिये ।। जय जय । ।
बिकट निशाचर कुन्थनी, दधिमती .हे दधिमती हे ।
त्रिभुवन ग्रथिनी मात , जय जय विष्णु प्रिये । । जय जय । ।
दिवानाथ -सम -भासिनी , मुखहासिनी हे मुखहासिनी हे ।
मरुधर वासिनी मात , जय जय विष्णु प्रिये । । जय जय । ।
जगदम्ब जय कारिणी खल हरिणी हे.खल हरणीहे ।
मृगरिपु चारणी मात , जय जय विष्णु प्रिये । । जय जय । ।
पिप्पलाद मुनि पालनी ,वपुशालिनी हे .वपुशालिनी हे ।
खल दल दामिनी मात , जय जय विष्णु प्रिये । । जय जय । ।
तेज विदित सौदामिनी, हरी भामिनी हे .हरी भामिनी हे ।
अपि गज गामिनी मात ,जय जय विष्णु प्रिये । । जय जय । ।
धरणीधर सु सहायनि ,श्रुति गायनी हे श्रुति गायनी हे ।
वांछित फल दायनी मात , जय जय विष्णु प्रिये । । जय जय । ।
दुष्ट निकन्दनि मात , जय जय विष्णु प्रिये । ।
सकल मनोरथ दोहिनी , जग मोहिनी हे .जग मोहिनी हे ।
पशुपति मोहिनी मात , जय जय विष्णु प्रिये ।। जय जय । ।
बिकट निशाचर कुन्थनी, दधिमती .हे दधिमती हे ।
त्रिभुवन ग्रथिनी मात , जय जय विष्णु प्रिये । । जय जय । ।
दिवानाथ -सम -भासिनी , मुखहासिनी हे मुखहासिनी हे ।
मरुधर वासिनी मात , जय जय विष्णु प्रिये । । जय जय । ।
जगदम्ब जय कारिणी खल हरिणी हे.खल हरणीहे ।
मृगरिपु चारणी मात , जय जय विष्णु प्रिये । । जय जय । ।
पिप्पलाद मुनि पालनी ,वपुशालिनी हे .वपुशालिनी हे ।
खल दल दामिनी मात , जय जय विष्णु प्रिये । । जय जय । ।
तेज विदित सौदामिनी, हरी भामिनी हे .हरी भामिनी हे ।
अपि गज गामिनी मात ,जय जय विष्णु प्रिये । । जय जय । ।
धरणीधर सु सहायनि ,श्रुति गायनी हे श्रुति गायनी हे ।
वांछित फल दायनी मात , जय जय विष्णु प्रिये । । जय जय । ।
मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009
श्री दधिमती मातेश्वरी का छंद
छन्द गुन दधिमत का गाता, सकल की साय करो माता ।
गोठ एक मांगलोद माई ,बिराजे दधिमती महा माई । ।
जंगल में एक मन्दिर आसमानी उसी को जाने सब जनि ।
छात्र बिराजे सोहनो, चार भुजा गल माल ।
कानन कुंडल झील मिले , माता सिंह असवारे। ।
बाजे नोपत दिन राता, सकल की साय करो माता । छन्द ।
दधिमती महा माई , महर कर गोठ नगर आई ।
ग्वालो चरावत है गाई,कहयो तू बोली मत भाई । ।
जब तब बाहर मै आउ, लोक में सम्पति बर्पाऊ ।
दधिमती बहार जब निसरी , धुंध भई दिन रैन । ।
हुई गरज़ना सिंह की , गउ भिदक गई भागी ।
ग्वालो गाऊ घेर लाता , सकल की साय करो माता । छन्द।
ग्वालो हो हो कर रो यो , वचन देवी को भूल गयो ।
तब माता बहार नही आई , गुप्त एक मस्तक पुज़वाई । ।
दधिमत माता की जो पूजा करे ,जो कोई नर नार ।
निश्चय हो कर धरे जो धियान ,तो बेडा हो जावे पार । ।
दुःख दरिद्री दूर हो जाता , सकल की साय करो माता । छन्द ।
परचों एक साहूकार पायो माता के मन्दिर चुनवायो ।
पोल एक सूरज के सामी , कुण्ड का अमृत है पांणी । ।
अधर खम्ब एसो बनियो , जानत है सब जाण ।
कल युग में छिप जायसी , सत युग की से ना ण । ।
कलि में करत लोगा बा ता, सकल की साय करो माता । छन्द ।
परचों एक पाली नो रान्ना,उदय पुर मेवाड़ सब जानो । ।
कारज उनका भी सिद्ध किना , वचन संनान पुत्र देय दिना ।
सुतो सपनो एक आयो , जाग सके तो जाग । ।
देऊ गड़चित्तोड़ को ,मेंटू थ्हरे दिल के दाग ।
द्रव्य एक जुना भी पाता, सकल की साय करो माता । छन्द ।
रात को रांणा उठ जागियो , माता के पाव लगियो ।
आप को अखिल बचन पाऊ,देश में मन्दिर चुनवाऊ । ।
तब देवी का हुकम सु ,आयो देश दिवाण ।
मन्दिर चुनवाओ भूप सु स , उचो कियो निवाण । ।
कुण्ड की पेडी बंधवाता , सकल की साय करो माता । छन्द ।
भक्त नित सेवा ही करता ,धियान दधिमत माता का धरता ।
दश रातो मेलो भरे सजी ,चैत्र आसोज माय । ।
देश देश के आवे यात्री , करे मन की आशा पुरी ।
जो जण गावे अरु सुने , निस दिन धरे ध्यान । ।
जो माता की शरण आता , अन्न धन वैभव पाता ।
हात जोड़ कर भक्त यह गाता , सकल की साय करो माता । छन्द ।
गोठ एक मांगलोद माई ,बिराजे दधिमती महा माई । ।
जंगल में एक मन्दिर आसमानी उसी को जाने सब जनि ।
छात्र बिराजे सोहनो, चार भुजा गल माल ।
कानन कुंडल झील मिले , माता सिंह असवारे। ।
बाजे नोपत दिन राता, सकल की साय करो माता । छन्द ।
दधिमती महा माई , महर कर गोठ नगर आई ।
ग्वालो चरावत है गाई,कहयो तू बोली मत भाई । ।
जब तब बाहर मै आउ, लोक में सम्पति बर्पाऊ ।
दधिमती बहार जब निसरी , धुंध भई दिन रैन । ।
हुई गरज़ना सिंह की , गउ भिदक गई भागी ।
ग्वालो गाऊ घेर लाता , सकल की साय करो माता । छन्द।
ग्वालो हो हो कर रो यो , वचन देवी को भूल गयो ।
तब माता बहार नही आई , गुप्त एक मस्तक पुज़वाई । ।
दधिमत माता की जो पूजा करे ,जो कोई नर नार ।
निश्चय हो कर धरे जो धियान ,तो बेडा हो जावे पार । ।
दुःख दरिद्री दूर हो जाता , सकल की साय करो माता । छन्द ।
परचों एक साहूकार पायो माता के मन्दिर चुनवायो ।
पोल एक सूरज के सामी , कुण्ड का अमृत है पांणी । ।
अधर खम्ब एसो बनियो , जानत है सब जाण ।
कल युग में छिप जायसी , सत युग की से ना ण । ।
कलि में करत लोगा बा ता, सकल की साय करो माता । छन्द ।
परचों एक पाली नो रान्ना,उदय पुर मेवाड़ सब जानो । ।
कारज उनका भी सिद्ध किना , वचन संनान पुत्र देय दिना ।
सुतो सपनो एक आयो , जाग सके तो जाग । ।
देऊ गड़चित्तोड़ को ,मेंटू थ्हरे दिल के दाग ।
द्रव्य एक जुना भी पाता, सकल की साय करो माता । छन्द ।
रात को रांणा उठ जागियो , माता के पाव लगियो ।
आप को अखिल बचन पाऊ,देश में मन्दिर चुनवाऊ । ।
तब देवी का हुकम सु ,आयो देश दिवाण ।
मन्दिर चुनवाओ भूप सु स , उचो कियो निवाण । ।
कुण्ड की पेडी बंधवाता , सकल की साय करो माता । छन्द ।
भक्त नित सेवा ही करता ,धियान दधिमत माता का धरता ।
दश रातो मेलो भरे सजी ,चैत्र आसोज माय । ।
देश देश के आवे यात्री , करे मन की आशा पुरी ।
जो जण गावे अरु सुने , निस दिन धरे ध्यान । ।
जो माता की शरण आता , अन्न धन वैभव पाता ।
हात जोड़ कर भक्त यह गाता , सकल की साय करो माता । छन्द ।
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